Purnima Vrat सभी के लिए बड़ा ही लाभकारी है, पूर्णिमा का दिन भगवान शिव तथा भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का विशेष दिन माना गया है | इस व्रत को करने से हमें भगवान विष्णु , महादेव तथा मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है , पूर्णिमा का व्रत सभी के लिए बड़ा ही लाभकारी है चाहे वह धन की इच्छा करने वाला हो विद्या की इच्छा करने वाला हो तथा सुख की इच्छा करने वाला हो सभी के लिए लाभप्रद है यह तीन व्रत आपके जीवन के लिए विशेष लाभकारी माने गए हैं | एकादशी व्रत सोमवार व्रत पूर्णिमा व्रत!! पूर्णिमा का व्रत सभी कर सकते हैं चाहे वह पुरुष हो या स्त्री या कन्या हो!!!
Purnima vrat की महिमा-
पूर्णिमा एक बहुत महत्वपूर्ण तिथि है इस दिन चांद अपनी सारी कलाओं से परिपूर्ण होता है महीने में हमेशा दो पक्ष होते हैं हम एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष होता है शुक्ल पक्ष के 15 वें दिन पूर्णिमा होती है पूर्णिमा के दिन आकाश में चंद्र पूर्ण रूप से दिखाई देते हैं इसलिए पूर्णिमा के दिन चंद्र देव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है!!
पूर्णिमा व्रत का प्रारंभ-
पूर्णिमा व्रत का प्रारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से या वैशाखी पूर्णिमा से या फिर आप कार्तिक पूर्णिमा से पूर्णिमा व्रत का प्रारंभ कर सकते हैं पूर्णिमा का व्रत 32 की संख्या में रखे जाते हैं जब आप पूर्णिमा व्रत का प्रारंभ कर रहे हो तो पहले ही दिन आपको जितनी पूर्णिमा का व्रत रहना है इतने दिन का संकल्प मन में ले !! अगर आप चाहे तो 32 ना रहकर 11 या 21 पूर्णिमा का व्रत रह सकते हैं!
पूर्णिमा व्रत के पूजन की सामग्री-
- मंडप के लिए केले के पत्ते!
- पंच पल्लव
- कलश लिए लोटा
- फल
- रोली
- कलावा
- पुष्प
- हल्दी , सुपारी
- चौकी ,दीप ,तुलसी
- पान ,केसर ,पंचामृत
- चूरमे का प्रसाद
- पीला वस्त्र
- दूध
- अक्षत
पूर्णिमा व्रत की पूजन विधि-
- इस व्रत में ज्यादा कुछ विशेष करने की आवश्यकता नहीं होती है बस सुबह उठकर सर्वप्रथम सूर्य भगवान को अर्ध्य पूर्णिमा व्रत के दिन जरूर दें!
- आपको पूर्णिमा के दिन प्रातः काल स्नान आदि करके शिव जी के मंदिर जरूर जाना चाहिए तथा शिव जी के मंदिर में शिवलिंग का पूजन अवश्य करिए शिवलिंग पर दूध युक्त जल तथा सफेद पुष्प जरूर अर्पण करें!!
- आपको पूर्णिमा के दिन घर में भगवान विष्णु का ध्यान करके ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करें तथा पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा तथा स्वयं इन की कथा कहना बहुत ही लाभकारी माना गया है!
- संध्या काल के समय जब आकाश में चंद्रदेव आ जाए तब आपको एक लोटे में जल भरकर उसमें गंगाजल चावल दूध सफेद पुष्प डालकर चंद्रदेव को विधिपूर्वक अर्घ्य दें तथा चंद्र देव को दीपदान करना ना भूले!!
- संध्या काल के समय चौकी बिछाकर उस पर पीला वस्त्र उस पर गौरी गणेश तथा कलश की स्थापना करें फिर उसके बाद भगवान विष्णु मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें प्रतिमा स्थापित करने के बाद आप विधिपूर्वक इनके पूजा करें सर्वप्रथम गणेश मां गौरी तथा पृथ्वी की पूजा करें उसके बाद कलश भगवान विष्णु मा लक्ष्मी इनकी विधि पूर्वक पूजा करें पूजन में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पित करना ना भूलें ध्यान रहे मां लक्ष्मी को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाया जाता!!
- पूजन करने के बाद कथा सुने तथा कथा सुनते समय हाथ में पुष्प जरूर ले कथा समाप्त होने के बाद वह पुष्प प्रभु नारायण के चरणों में चढ़ा दे फिर कथा के बाद होम करें होम के बाद प्रभु की आरती जरूर करें!!
- पूजन करने के बाद फलाहार में आप मीठा भोजन अवश्य बनाइए दूध से बनी हुई चीजें अब आप चंद्रदेव को अवश्य लगाएं पूर्णिमा के दिन मीठे भोजन तथा दूध से बनी हुई चीजों का बड़ा महत्व होता है तथा आप को भी इस दिन मीठा भोजन ही ग्रहण करना चाहिए!!!
Purnima Vrat कथा-
बहुत समय पहले की बात है किसी नगर में एक साहूकार रहा करता था साहूकार की 2 बेटियां थी दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत करती थी लेकिन छोटी बेटी हमेशा उस व्रत को अधूरा रखती थी और मन लगाकर पूजा पाठ नहीं करती थी और वहीं दूसरी ओर बड़ी बेटी हमेशा पूजा-पाठ मन लगाकर श्रद्धा के साथ व्रत पूरा करती थी समय बीतता गया और साहूकार की दोनों बेटियां बड़ी हो गई और विवाह के योग्य हो गई फिर साहूकार ने बड़ी धूमधम से अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया विवाह के बाद बड़ी बेटी जो पूरी आस्था के साथ व्रत रखती थी उसने बहुत ही सुंदर और स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया वहीं दूसरी तरफ छोटी बेटी जो मन लगाकर व्रत नहीं करती थी और जो पूर्णिमा का व्रत हमेशा अधूरा छोड़ देती थी उसकी संतान होते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती थी वह काफी परेशान रहने लगी उसके पति तथा उसके ससुराल वाले भी बहुत परेशान रहने लगे तब उन लोगों ने ब्राह्मण को बुलाकर उसकी कुंडली दिखई और जानना चाहा कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है विद्वान पंडितों ने बताया कि इसने पूर्णिमा के अधूरे व्रत किए हैं इसलिए इसके साथ ऐसा हो रहा है तब ब्राह्मणों ने उसे व्रत की विधि बताई वह पूर्णिमा का उपवास रखने के लिए सुझाव दिया इस बार उसने विधिपूर्वक व्रत रखा लेकिन इस बार उसकी संतान जन्म के बाद कुछ दिनों तक जीवित रही उसके बाद मृत्यु को प्राप्त हो गई फिर उसने मृत शिशु को पीढ़ा में लिटा कर उस पर एक कपड़ा रख दिया और फिर अपनी बहन को बुला लाई और अपनी बहन को वही पीढ़ा बैठने के लिए दे दिया जब बड़ी बहन उस पर बैठने ही वाली थी उससे पहले उसका कपड़ा उस पीढ़े पर स्पर्श हुआ उससे पहले ही उसका बच्चा रोने लगा यह तो एक बड़ी बहन को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने अपनी छोटी बहन से कहा कि तू अपनी ही संतान को मारने के दोष मुझ पर लगाना चाहती है अगर इसे कुछ हो जाता तो क्या होता तब छोटी बहन ने कहा दीदी यह तो पहले से ही मरा हुआ था आपके प्रताप से ही यह जीवित हुआ है बस फिर क्या था पूर्णिमा व्रत की शक्ति का ढिंढोरा सारे नगर में पिटवा दिया गया तथा तबसे नगर के सभी लोग पूर्णिमा व्रत को विधि विधान से करने लगे और अब बड़ी बहन के साथ साथ छोटी बहन को भी पूर्णिमा के व्रत के प्रभाव से संतान सुख प्राप्त हुआ और दोनों बहने विधि पूर्वक पूर्णिमा का व्रत करने लगे!!!
पूर्णिमा व्रत की उद्यापन विधि-
पूर्णिमा का व्रत भाद्रपद या पूस की पूर्णिमा उद्यापन करना चाहिए या फिर जब आप का संकल्प पूरा हो जाए अर्थात जितने दिन का अपने संकल्प लिया हो जितनी पूर्णिमा का आप का संकल्प हो पूर्णिमा जब पूर्ण हो जाए तब आप अपने व्रत का उद्यापन कर सकते हैं उद्यापन के दिन निराहार रहकर उपवास करें तथा किसी ब्राह्मण को बुलाकर घर में श्री सत्यनारायण भगवान की कथा करवाएं पंजीरी पंचामृत का भोग लगाएं तथा भगवान नारायण का आशीर्वाद प्राप्त करें और 7 ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराएं अगर आपके सामर्थ्य हो तो ब्राह्मण जोड़े अर्थात ब्राह्मण और ब्रम्हाणी को पीला वस्त्र तथा दक्षिणा अवश्य दें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें इस विधि से आप उद्यापन कर सकते हैं!!!!!
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