Ramnavami का महत्व –भगवान विष्णु ने कहा था कि जब जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं अवतार लेकर प्रकट होता रहूंगा लोगो का कल्याण करने हेतु मैं हर युग में अवतरित आऊगा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में नवमी के दिन राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र के रूप में श्री राम बनकर प्रभु विष्णु अवतरित हुए थे और रावण का संहार कर धरती को रावण के अत्याचार से बचाया था Ramnavami की पूजा भगवान राम के जन्म दिवस के उत्सव के रूप में मनाई जाती है!
पूजन सामग्री
- राम दरबार की प्रतिमा
- गणेश जी की मूर्ति
- चावल
- सिंदूर
- रोली
- मोली
- तुलसी दल
- धूप
- दिया
- कपूर
- घी
- गंगाजल
- फूल
- माला
- फल
- मिठाई
- चौकी
- पीला वस्त्र
Ramnavami पूजन विधि
- सर्वप्रथम पूजन का स्थल साफ व स्वच्छ कर ले उसके बाद आपको आसन लगाना है आसन के लिए चौकी लगाकर उस पर पीला वस्त्र बिछाए पीले के अलावा आप लाल वस्त्र दिखा सकते हैं
- करें फिर स्वयं पर गंगाजल छिड़क कर स्वयं को पवित्र करें उसके बाद आचमन करें
आचमन मंत्र
ओम केशवाय नमः
ॐ नारायणाय नमः
ओम माधवाय नमः
- फिर चौकी पर अक्षत से अष्टदल कमल बनाएं उस पर गणेश जी की मूर्ति को विराजमान करें हाथ में अक्षत पुष्प और गंगाजल लेकर संकल्प लें कि आप श्रद्धा पूर्वक आपकी आपकी पूजा कर रहे हैं उसे स्वीकार कीजिए और हमारी मनोकामना पूर्ण कीजिए फिर गणेश भगवान की पूजा करें दीप धूप जलाएं स्नान कराएं उसके बाद मूली अर्पित करें उसके बाद जनेऊ अर्पित करें फूल और दुर्वा चढ़ाकर भोग लगाकर भगवान गणेश का पूजन करें
- माना जाता है कि किसी भी पूजा को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है तभी पूजा सफल मानी जाती है
अब भगवान राम का पूजन करेंगे
- रामदरबार की फोटो भगवान गणेश की मूर्ति के पीछे स्थापित करें और भगवान से कहे कि हे प्रभु हमारी पूजा स्वीकार करें फिर माला पुष्प अर्पित करें उसके बाद रोली हल्दी का तिलक लगाएं तथा उसके बाद फल मिठाई का भोग लगाएं तथा जल अर्पित करें उसके बाद पान सुपारी अर्पित करें उसके बाद दक्षिणा अर्पित करें और भगवान को नमन करें उसके बाद आरती करे
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श्री राम आरती
आरती कीजे श्री रघुवर जी की।
सत चित आनंद शिवसुंदर की।।
दशरथ तनय कौशल्या नंदन,
सुर, मुनि,रक्षक, दैत्य निकंदन,
अनुगत भक्त-भक्त उर चंदन,
मर्यादा पुरुषोत्तम वर की,
आरती कीजे श्री रघुवर जी की।।.
निर्गुण,सगुण, अनूप रूप निधि,
सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि,
हरण शोक भयदायक नवनिधि,
माया रहित दिव्य नर वर की,
आरती कीजै श्री रघुवर जी की।।
जानकी पति सुर अधिपति जगपति,
अखिल लोक पालक त्रिलोक गति,
विश्व बंध अवंनह अमित गति,
एक मात्र गति सचराचर की,
आरती कीजै श्री रघुवर जी की ।।
शरणागति वत्सल व्रतधारी,
भक्त कल्प तरुवर असुरारी,
नाम लेत जग पावन कारी,
वानर सखा दीन दुःख हर की,
आरती कीजै श्री रघुवर जी की।।
स्तुति
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कन्जारुणम ॥1॥
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम ।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरम् ॥2॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम् ।
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथ नन्दनम ॥3॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धुषणं ॥4॥
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम् ।
मम् हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम् ॥5॥
।।सो।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥
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