Navratri puja vidhi 2023 शुभ मुहूर्त, स्थापना, पूजन सामग्री और कथा !!!

Navratri puja vidhi नवरात्र की पूजा सही विधि और सही मुहूर्त पर होने से मां देवी भगवती के स्वरूप का आशीर्वाद प्राप्त होता है नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है तथा विधि पूर्वक यथा विधि हवन करके मां के नौ स्वरूप से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है नवरात्र का हमारे हिंदू पंचांग में बड़ा ही महत्व बताया गया है

navratri puja vidhi

नवरात्र का महत्व


सभी जानते हैं कि नवरात्र के 9 दिनों तक विधिपूर्वक व्रत किया जाता है तथा पूजन किया जाता है तथा नवरात्र को हिंदू धर्म में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है चैत्र नवरात्र बुधवार के दिन पड़ रही है ऐसा माना जाता है कि बुधवार के दिन मां नौका पर सवार होकर आती है और इस बार मां देवी भगवती का विसर्जन 31 मार्च को पड़ रहा है उस दिन शुक्रवार है ऐसा कहा जाता है कि शुक्रवार के दिन मां डोली पर सवार होकर विदा होती हैं नाव को मां दुर्गा का शुभ वाहन माना जाता है जब मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती है तो भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं आपके किए गए हर काम में पूजा पाठ में सफलता मिलती है

नवरात्र प्रारंभ –

22 मार्च से प्रारंभ 

31 मार्च को विसर्जन और पारण

कलश स्थापना मुहूर्त- 22 मार्च को सुबह 5:51 से 7:04 तक

नवरात्रि में नौ देवियों का पूजन किया जाता है

  • मां शैलपुत्री
  • मां ब्रह्मचारिणी
  • मां चंद्रघंटा
  • मां स्कंदमाता
  • मां कात्यायनी
  • मां कालरात्रि 
  • मां महागौरी
  • मां सिद्धिदात्री

नवरात्रि में व्रत का नियम- नवरात्र के 9 दिनों तक भक्तों मां भगवती का श्रद्धा पूर्वक व्रत करते हैं और रात्रि में फलाहार करते हैं और अगर आप ना रात्रि में पूरे 9 दिनों तक व्रत नहीं कर सकते हैं तो आप पहले दिन और अष्टमी के दिन का व्रत कर सकते हैं मन में श्रद्धा का भाव होना चाहिए मां देवी भगवती सभी को आशीर्वाद प्रदान करती है!

Navratri puja vidhi सरल पूजा विधि- 

  •  नवरात्रि के पहले दिन आपको घर की साफ सफाई कर भगवान का मंदिर 1 दिन पहले साफ करने फिर स्नानादि करके घर में गंगाजल छिडके क्योंकि इस दिन कलश स्थापना करना होता है देवी दुर्गा को पूरे 9 दिनों के लिए घर में आमंत्रित करते हैं इसलिए घर की सफाई बहुत ही आवश्यक होती है!
  • नवरात्रि मैं मां दुर्गा की पूजा को  पूजाअलग से चौकी लगाकर पूजा करना चाहिए
  • आसन को गोबर से लिप कर उस पर चौकी स्थापित करें फिर उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा जिसमें मां दुर्गा के नौ स्वरूप हो उन्हें स्थापित करें उसके पश्चात कलश के स्थान को गोबर से लिप कर उस पर आटे से चौक बनाकर उस पर कलश स्थापित करें!
  • कलश के सामने गौरी गणेश की स्थापना करें और मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना करें आसन देकर घी का दीपक प्रज्वलित करें
  • पूजन के समय संकल्प लें हाथ में पुष्प अक्षत चावल दक्षिणा जल लेकर संकल्प लें कि आप नवरात्र का व्रत कर रहे हैं मां दुर्गा उसे निर्विघ्नं पूर्ण करें ऐसा कहकर वह मां दुर्गा के सामने छोड़े और फिर पूजन प्रारंभ करें!
  • सर्वप्रथम गणेश भगवान और मां गौरी और पृथ्वी मां का पूजन करें जल पुष्प हल्दी सिंदूर सब अर्पित करें उसके बाद कलश का पूजन करें फिर मां दुर्गा के नौ स्वरूप का पूजन करें भोग लगाएं हवन करें आरती करें मां दुर्गा की चालीसा पढ़े हो सके तो सप्तशती का पाठ करें!

कलश स्थापना विधि-

  1. आप चाहे तो दीप कलश स्थापित कर सकते हैं परंतु यह ध्यान रखना होता है कि दीप कलश अखंड होता है उसे पूरे 9 दिनों तक जलते रहना चाहिए और अगर आप दीप कलश का ध्यान नहीं रख सकते हैं आपके पास समय की कमी है तो आप श्री कलश स्थापित कर सकते हैं
  2. श्री कलश इस प्रकार स्थापित करें तांबे का लोटा लेकर उस पर स्वास्तिक बनाएं कलावा बांधे तथा कलश के अंदर जल थोड़ा सा गंगाजल हल्दी की गांठ सिक्का चावल पंच पल्लव रखकर उस पर लाल कपड़े में लपेटकर नारियल के ऊपर स्वास्तिक बनाकर थोड़ा सा चावल छिड़ककर कलश के ऊपर स्थापित कर दें!

पूजन सामग्री

  • चौकी
  •  हल्दी 
  • पंच पल्लव 
  • सुपारी 
  • गोबर 
  • रोली 
  • चावल
  •  कलावा 
  • मीठा 
  • अक्षत 
  • लोंग 
  • इलाइची 
  • पान 
  • नारियल 
  • अक्षत 
  • लाल कपड़ा 
  • मां दुर्गा की प्रतिमा 
  • चुनरी 
  • मां दुर्गा का श्रृंगार का सामान

पहले दिन की पूजा मां शैलपुत्री की होती है मां शैलपुत्री मां सती का ही रूप है

maa shailputri

पहले दिन की कथा-


पौराणिक कथा के अनुसार  प्रजापति दक्ष ने बहुत महान यज्ञ का आयोजन करवाया उसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रण दिया परंतु उन्होंने जानबूझकर भोलेनाथ को यज्ञ में आने का आमंत्रण नहीं दिया जब यह बात माता सती को ज्ञात हुआ कि उनके पिता एक महान यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं तब उनका मन वहां जाने के लिए वेब पर चयन हुआ उन्होंने भोलेनाथ को अपने मन की सारी व्यथा बताई भोलेनाथ बोली देवी प्रजापति दक्ष हमसे रोस्ट हैं इसलिए उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया है परंतु उन्होंने हमें नहीं बुलाया है नहीं हमें कोई सूचना भेजी है इसलिए आपका वहां जाना उचित नहीं होगा भोलेनाथ की यह बात सुनकर माता सती का मन शांत नहीं हुआ पिता के यहां जाने तथा अपनी माता से मिलने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी माता सती के आग्रह करने पर भोलेनाथ ने माता सती को वहां जाने की अनुमति दे दी इस प्रकार मां पार्वती प्रजापति दक्ष के यहां पहुंची उन्हें एहसास हुआ कि उनसे कोई प्रेम पूर्वक बात नहीं कर रहा है केवल माही है जो प्रेम पूर्वक व्यवहार कर रही थी तथा भोले नाथ के प्रति प्रजापति दक्ष अपशब्द कह रहे थे यह देख मां पार्वती को बहुत आहत हुआ और उसी वक्त पर हवन कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए इस प्रकार में मां सती के नाम से प्रख्यात हुई और अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेकर मां शैलपुत्री के नाम से जानी जाने लगी मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ यानी बैल है मां शैलपुत्री की उत्पत्ति सेल से हुई है बोलो “शैलपुत्री मैया की जय”

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